भारतीय धार्मिक परम्परा में देवियों का विशिष्ट स्थान रहा है। ख्रीस्तीय धार्मिक परम्परा में माता मरियम का उनके पुत्र ईसा मसीह के पश्चात् सर्वोच्च पूजनीय और पवित्र स्थान है। पवित्र बाइबिल के अनुसार माता मरियम पवित्र आत्मा की शक्ति से ईश पुत्र ईसा मसीह की जननी बनी। क्रूस पर उसकी दर्दनाक पीड़ा के समय प्रभु ईसा मसीह ने अपनी माता मरियम को सारी मानवजाति की माता के रूप में अपने शिष्य को सौंप दिया। विगत दो हजार वर्षो से संसार भर में मसीही भक्त माता मरियम को ईश्वरीय माता के रूप में पूजते आये हंै। 8 दिसम्बर 1854 को संत पापा पीयुस नौंवे ने माता मरियम को ‘‘निष्कलंक माता ’’ का दर्जा दिया।
भारतीय परम्परा में तीर्थस्थानों तथा तीर्थयात्रा का विशेष महत्व है। बरेली धर्मप्रान्त में बाजपुर स्थित संत मेरी गिरजाघर माता मरियम की भक्ति का तीर्थस्थान ेहै । विगत 33 वर्षो से निष्कलंक माता मरियम को समर्पित इस पुण्यक्षेत्र में दिसम्बर माह के पहले रविवार को प्रार्थना और उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उत्सव की तैयारी में नौ दिन विशेष प्रार्थना आयोजित की जाती है। इस उत्सव में शारीरिक और आत्मिक चंगाई के लिये प्रार्थना की जाती है। अनेक लोग वर्ष के दौरान इस स्थन में आ कर माता की शरण में अपने जीवन की दुःखद और विषम परिस्थितियों में माता मरियम की मध्यस्थता से ईश्वर का अनुग्रह, सांत्वना और अपने जीवन के लिये एक नवीन आशा का अनुभव करते हैं।
निष्कलंक माता मरियम का उत्सव मनाने तथा इस पावन तीर्थयात्रा करने का अर्थ यह है कि हम भी माता मरियम के समान एक पापरहित और पवित्र जीवन जीने का प्रयास करें। अपने पुत्र ईसा मसीह को जीवन देनेवाली, अपने पुत्र के जीवन में हर समय साथ रहने वाली हमारी दैेवीय माँ मरियम हमारे संासारिक जीवन की हर परिस्थिति, हर संकट में सहारा, धैर्य और आशा हमें देती रहेगी।